आज रिलीज हुई रणदीप हुड्डा अभिनीत फिल्म “स्वातंत्र्यवीर सावरकर” भारत की आजादी के इतिहास का एक और पहलू सामने लाती है। अभिनेता से निर्माता-निर्देशक और लेखक बन रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ इतिहास के उन पन्नों को विस्तार से लिखने की कोशिश है, जो इसे बनाने वालों के मुताबिक एक योजना के तहत ‘मार’ दिए गए। ‘हू किल्ड हिज स्टोरी’ टैगलाइन से सिनेमाघरों में पहुंची ये फिल्म भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शामिल विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और उनके सशस्त्र क्रांति की नीतियों का खुलासा करती है। रणदीप हुड्डा ने ही फिल्म में सावरकर की भूमिका निभाई है। फिल्म बताती है कि भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए सावरकर जिस सोच के साथ आगे बढ़ रहे थे और अपने संगठन को मजबूत कर रहे थे। अगर उसमें वह सफल होते तो देश को आजादी काफी पहले मिल गई होती।
फिल्म की कहानी क्या है?
कहानी की शुरुआत 18 वीं सदी के अंत के दृश्यों से होती है। देश में प्लेग महामारी फैली हुई है। लोग मरे जा रहे हैं। देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। इसी बीच महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में विनायक दामोदर सावरकर का जन्म होता है। रणदीप हुड्डा ने सावरकर का किरदार निभाया है। विनायक दामोदर सावरकर के अंदर बचपन से ही अंग्रेजों के खिलाफ एक गुस्सा है। वे अपने देश से अंग्रेजों को भगाना चाहते हैं। इसके लिए वे अभिनव भारत नाम से एक संगठन भी बनाते हैं।
सावरकर का हमेशा से यही मानना था कि अंग्रेजों को अहिंसा से नहीं हराया जा सकता। इसके लिए वे लोगों को हथियार उठाने के लिए आह्वान भी करते हैं। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए सावरकर उन्हीं के देश लंदन चले जाते हैं। वहीं से वे अपनी क्रांति जारी रखते हैं। वहां उनके कुछ सहयोगी अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर देते हैं। फिर सावरकर के ऊपर साजिश करने का आरोप लगाया जाता है। उन्हें गैरकानूनी रूप से भारत भेजकर कालापानी की सजा दे दी जाती है। कालापानी की सजा के दौरान उन्हें असहनीय पीड़ा दी जाती है।