भोपाल। पिछले कुछ दिनों में महुगंज में एक पुलिसकर्मी की मृत्यु व अन्य के गंभीर घायल होने व इंदौर में एक थाना प्रभारी के साथ हुई मारपीट व अभद्रता के बाद अब पुलिस अधिकारी भी अपने अधिकारों को लेकर सोशल मीडिया पर सक्रिय हो चुके है। मध्यप्रदेश के कई् जिलों के पुलिस अधिकारी सहित कर्मचारियों ने इन दोनों घटनाओं के विरोध में अपने सोशल मीडिया के स्टेटस अपडेट कर दिए है, इसके साथ ही इन्होने अपनी डीपी को बदल दिया है। इसके पुलिस की ओर से अपने अधिकारों को लेकर अभियान माना जा रहा है। “Justice For Polilce – Mauganj & Indore” के मैसेज के साथ मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों ने अपनी डीपी व स्टेटस बदल लिया है। इसके साथ ही पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों ने अपने लिए न्याय की मांग भी सोशल मीडिया पर उठाना शुरू कर दी है।

“Justice for Police #Mauganj# Indore#
“Protect those who protect us An attack on police is an attack on justice!”
Law and order stand strong when our police stand protected!”
Strong laws for those who risk their lives for society!”
Justice for Police #Mauganj#Indore#
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
मध्य प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर हमले की बढ़ती घटनाएं एक गंभीर सवाल खड़ा करती हैं। हाल ही में मऊगंज जिले के गदरा गांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना इसका ताजा उदाहरण है। एक अपहरण की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर भीड़ ने न सिर्फ पथराव किया, बल्कि इस हमले में एक एएसआई और एक नागरिक की जान चली गई। यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले एमपी में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। पिछले साल छतरपुर में थाने पर हमला हो या खरगोन में अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई के दौरान पुलिस पर डंडों से प्रहार, इसी तरह ग्वालियर में जुए की सूचना पर बदमाश ने ASI का सिर फोड़ दिया। भिंड में भी माफिया पुलिसवालों पर हमले कर देते हैं। इससे पहले शहडोल में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि प्रदेश में कानून के रखवालों की राह आसान नहीं है।
पुलिस पर हमला: अपराधियों का दुस्साहस या समाज का गुस्सा
इन घटनाओं को देखकर दो बातें सामने आती हैं। पहली, अपराधियों का बढ़ता दुस्साहस। छतरपुर में असामाजिक तत्वों ने संगठित रूप से थाने पर हमला किया। यहां तक कि थाने में आग लगाने की भी कोशिश की। भीड़ ने कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाने की कोशिश की। दूसरी ओर, मऊगंज जैसी घटनाएं बताती हैं कि कई बार यह हिंसा स्थानीय समुदाय के गुस्से का परिणाम होती है। लोग पुलिस को अपने खिलाफ मानते हैं, खासकर तब जब मामला उनके निजी या सामुदायिक हितों से जुड़ा हो। लेकिन क्या यह गुस्सा जायज है? पुलिस अगर अपहरण जैसे अपराध को रोकने की कोशिश कर रही है, तो उस पर पत्थर बरसाना कहां तक सही है?
सख्ती जरूरी, लेकिन संतुलन भी
विगत दिनों मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में विवाद के मामले बढ़े है, जिनको नियंत्रण करना जरूरी है। शांति व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस की सख्ती तो जरूरी है लेकिन आज के समय में पुलिस व प्रशासन का आम नागरिकों के साथ संतुलन भी जरूरी है। अगर पुलिस व प्रशासन का सामंजस्य और संतुलन आम जनता से बना रहेगा तो ऐसे विवादों को टाला जा सकता है।