अंजू नारोलिया
राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता
राष्ट्रीय खिलाड़ी
नारी सृष्टि की सृजनहार भी है और पालन हार भी बिना नारी के सृष्टि और समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती हमारी भारतीय संस्कृति में तो पूज्यनीय भी है लेकिन तीज त्योहारों धार्मिक आख्यानों और कहानियों में और नारी सशक्तिकरण के प्रचार के लिए बनाये गये मंचों से बोलते समय ।वास्तविकताओं में आज भी महिलाऐं हर स्तर पर शोषित प्रताड़ित हैं अपने अस्तित्व अपने हक के लिए आज भी हर पायदान पर घर से लेकर संसद तक संघर्ष कर रही है । क्या एक दिन सम्मान कर देने और मंच सजा देने से नारी का सशक्तिकरण हो जाऐगा । ये सोचने और चिंतन का विषय है अगर हम सही मायने में नवरात्रि को सार्थक करना चाहते हैं तो हमें समाज की सोच और सिस्टम दोनों में सुधार लाना होगा।
आजादी के बाद से लेकर अब तक महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है महिलाओं ने आज शिक्षा खेल राजनीति विज्ञान समाजसेवा अंतरिक्ष सेना सभी जगह अपनी योग्यता और संघर्षशीलता से स्थान बनाया है पर क्या मुट्ठी भर महिलाओं के सशक्तिकरण से पूरा महिला वर्ग को सशक्त मान लेंगे अगर हां तो हजारों की संख्या में घरेलू हिंसा दहेज बलात्कार छेड़छाड़ के कैस कहां से आ रहे हैं ।
महिलाओं को आज भी समाज में घर परिवार में वो सम्मान वो इज्जत वो अधिकार नहीं मिले हैं जिसकी वो अधिकारी हैं समानता तो बहुत दूर की बात है हमारी सरकारों ने महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत सी योजना बनाई लाड़ली बहना उज्ज्वला योजना राजनीति में हिस्सेदारी नौकरी में हिस्सेदारी पैतृक सम्पत्ति में अधिकार पर क्या सही मायने में उन्हें ये अधिकार मिल रहे हैं ये कौन देखेगा ।आज भी अधिकांश घरों में बेटे और बेटी में भेद किया जाता है आज भी पैतृक संपत्ति में 99 %बेटियों को अधिकार नहीं मिल रहा है आज 90%महिला जनप्रतिनिधि केवल नाम की है आज भी उनकी सत्ता कोई न कोई पुरुष ही चला रहा है वो केवल रबर स्टांप है महिलाओं को समाजिक दबाव बनाकर पैतृक संपत्ति के हक से बहुत सी दलीलें जैसे वो नौकरी करती है उसे क्या जरूरत वो व्यवसाय करती है उसे क्या जरूरत वो तो धनवान घर में ससुराल है उसे क्या जरूरत कह कर आज भी समाज महिलाओं का हक छीन रहा है यही सब बातें लड़कों पर लागू क्यों नहीं होती और सरकार के सारे नियम ताक पर हैं इन सब चीजों को देखकर लगता नहीं है कि नियम बनाने योजनाऐं बनाने से ज्यादा उनका कढ़ाई से पालन कराना जरूरी है आज भी हमारे समाज में लड़कियां मायके में भी मेहमान और ससुराल में भी मेहमान ही है उसे कहीं अधिकार प्राप्त नहीं अगर सच में महिलाओं का सशक्तिकरण करना चाहते हैं इस एक दिन दिखावा करने के बजाय तो समाज में सुधार लाना जरूरी है और समाज परिवार की सोच में बदलाव लाने के लिए सरकारों को सिस्टम में सुधार लाना पड़ेगा नियमों का कढ़ाई से पालन कराना पड़ेगा तभी महिलाओं का सशक्तिकरण हो पाएगा महिला दिवस मनाने से महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं होने वाला न ही उनको उनका सही हक मिलने वाला क्योंकि हमारे समाज में आज भी लाखों महिलाएं गृहणि है हम उनका जिक्र बड़े बड़े मंचों से देवी बोल बोलकर करते हैं पर वो देवी रोज कितनी बार कहां कहां खंडित होती है इसका जिक्र भी कोई नहीं करता मंचों से सफल महिलाओं का गुणगान किया जाता है जिन्होंने पूरी दुनिया से लड़कर बहुत कुछ खोकर अपना स्थान बनाया होता है पर 90 प्रतिशत महिलाएं जो आज भी शोषित है उनके सशक्तिकरण की केवल बात होती है उस पर काम नहीं होता
मैं नवरात्रि पर्व पर सभी महान लोगों से आग्रह करती हूं नारी को सम्मान दिलाने की शूरूआत अपने घर से करें तभी महिला दिवस मनाने का औचित्य है बरना हर साल एक दिन मंच सजाने से नारी सशक्तिकरण नहीं होने वाला ।
समाज को समर्पित नारी की बात एक कवित्री बहन ने लिखा है
मैं एक एक पर भारी हूंनाकाम नहीं हूं नारी हूंबुझकर बैठी में राख नहीं तीखी जलती चिंगारी हूंचेहरे से मीठा राग हूं मैंआंखों से लो हूं आग हूं मैंकाली काली इस दुनिया परएक स्वेत रंग का दाग़ हूं मैंपंजों से लेकर चोटी तककाबिल सारी की सारी हूं