नीतिका अग्रवाल
एल बी एफ अकादमी हाई स्कूल शिवपुर डायरेक्टर/प्रिंसिपल
कलम थी हाथों में, आवाज थी तीखी,
पर समाज ने कहा – चुप रह, ये बातें हैं गहरी।
सपनों को ताले में कैद कर दिया,उसे घर की चौखट पर सीमित कर दिया था।
पूछती रही वो – क्यों मेरा हक नहीं?
क्यों उड़ान भरने की इजाज़त नहीं?
जब दर्द में भी जन्म देती हूँ मैं,
तो जीने का हक क्यों मिलता नहीं?
बाँध दो चाहे जितनी बेड़ियाँ,
अब ये परवाज़ नहीं रुकेगा,
जो कल चुप थी, आज बोल रही है,
अपने हिस्से का आसमान खुद बून रही है।
ग्रहणी से लेकर मंगलयान तक परचम लहराती आधुनिक युग में रोटी से लेकर शस्त्र तक लोहा मनवाती है शक्ति का स्वरूप है वह हर असंभव को संभव कर दिखाती समुद्र की लहरों से लेकर स्पेस तक घर की रसोई से लेकर राजपथ तक परचम लहराती वह तो हर दिन संघर्ष से एक नई इवारत लिख जाती तो कभी इतिहास रच जाती कभी कल्पनाओं से कुछ आगे निकल जाती हर रूप में बेटी बहन पत्नी मां गुरु अनगिनत रूपों में कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ जाती एक मुस्कुराहट पर आंसुओं और दर्द को छुपा सबके लिए वह ताकत बन जाती।
सफलता या कामयाबी त्याग करके नहीं बल्कि सही चुनाव करके क्या सही है, क्या गलत फिर अकेले ही क्यों न चलना पड़े ठोकरों से ही संभालना पड़े ऊंचाइयों को छू जाती है, क्योंकि वह सिखती है फिर आगे बढ़ जाती है। ग्रहणी भी है,डॉक्टर भी है, वह फाइटर जेट भी उड़ती है ,अग्नी जैसी मिसाइल भी बनाती है, तो वह 8 दिन की स्पेस यात्रा को 200 दिन की यात्रा की मिसाल भी बन जाती है वह माउंट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा लहराती है, वह नारी ही तो है जो दुर्गा गौरी से मां काली तक का सफर तय कर जाती है कभी वर्दी में कभी काले कोट में न्याय की इबारत लिख जाती है।