अपर्णा शुक्ला
इटारसी, नर्मदापुरम
समाज में माताओं, बहनों की बहुत ही अहम भूमिका निभाई जाती है। क्योंकि बच्चों को संस्कार, प्रेम, अपनापन,नियम, सिखाया नहीं जाता किया जाता है। जिससे बच्चे अनुसरण करते है।
प्राचीन काल के समय महिलाएं पति के साथ यज्ञ, युद्ध, एवं जितने भी धार्मिक , राजनीतिक सभी कार्यों में सहयोग करती थी विदुषी महिलाए जिन्होंने शिवाजी, भगत सिंह, चंद्रशेखर जैसे बच्चों को जन्म देकर उन्हें देश भक्त बनाया संस्कृति अपने अपने देश की और संस्कार अपने अपने घरो की बहुत ही मायने रखती हैं।
जिस घर का जैसे माहौल होता है। बालक वैसे ही अनुसरण करता है, बोलना नहीं पड़ता है बालक एवं बालिका कोई भी हो घर के माहौल में ही ढलता ही है। पहले के जमाने में कुटुंब कबीले होते थे और लोग नाम सुनकर ही समझ जाते थे की किस परिवार से है और किस समाज से है क्योंकि बहुत असर होता है।
परिवार, समाज, कुटुंब क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी नियम कानून रीति रिवाज प्रेम, सौहार्द सब निभाना आता है क्योंकि संस्कार कभी भी नहीं जाते उसका असर दिख ही जाता है। इंसान का व्यक्तित्व झलकता है कि व्यक्ति किस परिवार को बिलांग करता है पहले के जमाने में रिश्ते एक दूसरे के माध्यम और उनके नाम से ही होते थे। आजकल इस का कोई महत्व ही ना रहा है क्योंकि रूपए के बल पर रिश्ते हो रहे है। जो ज्यादा दिन नहीं टिक पा रहे है क्योंकि सिर्फ आकर्षण ही मात्र रह गया है। संस्कार नाम की कोई भी बाकी नहीं बचा है सिर्फ दिखावा ही रह गया है जो ज्यादा नहीं चल पाता है।